सरस्वती पूजा भारत में मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है जो ज्ञान, संगीत, कला और शिल्प की देवी सरस्वती के सम्मान में मनाया जाता है। यह त्योहार वसंत पंचमी के दिन आता है, जो आमतौर पर जनवरी या फरवरी में होता है।
सरस्वती पूजा में देवी सरस्वती की प्रतिमा या तस्वीर की पूजा की जाती है। विद्यार्थी, कलाकार और संगीतकार विशेष रूप से इस दिन का महत्व समझते हैं और देवी से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पूजा करते हैं। यहां कुछ मुख्य विशेषताएँ हैं:
- पूजा विधि: पूजा में आमतौर पर सरस्वती देवी की मूर्ति को पीले या सफेद वस्त्र पहनाए जाते हैं और फूल, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं।
- वसंत पंचमी: यह दिन वसंत ऋतु की शुरुआत का प्रतीक है। लोग पीले रंग के कपड़े पहनते हैं और पीले फूलों से घर और पूजा स्थल सजाते हैं।
- पाठशालाओं में विशेष पूजा: स्कूल और कॉलेजों में सरस्वती पूजा का विशेष आयोजन होता है। विद्यार्थी अपनी पुस्तकों और उपकरणों को देवी के चरणों में रखकर पूजा करते हैं।
- सांस्कृतिक कार्यक्रम: इस अवसर पर कई जगहों पर संगीत और नृत्य के कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं, जहां लोग अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।
भगवान विष्णु और माता सरस्वती का युद्ध एक पौराणिक कथा से संबंधित है। यह कथा महाभारत के वन पर्व में वर्णित है। एक बार नारद मुनि ने एक यज्ञ का आयोजन किया और उसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया। इस यज्ञ में सरस्वती देवी भी उपस्थित थीं।
यज्ञ के अंत में नारद मुनि ने सभी देवताओं से पूछा कि इस यज्ञ में सबसे महत्वपूर्ण देवी या देवता कौन हैं? इस प्रश्न पर सभी देवता अलग-अलग उत्तर देने लगे, लेकिन सरस्वती देवी ने कहा कि वह सबसे महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वह ज्ञान की देवी हैं और बिना ज्ञान के कोई भी कार्य संभव नहीं है।

इस बात पर भगवान विष्णु ने तर्क दिया कि वे सृष्टि के पालनकर्ता हैं और बिना उनके सृष्टि का संचालन संभव नहीं है। इस तर्क-वितर्क ने एक विवाद का रूप ले लिया और अंततः भगवान विष्णु और माता सरस्वती के बीच युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई।
इस कथा से यह संदेश मिलता है कि सृष्टि के संचालन में हर देवता और देवी का महत्वपूर्ण स्थान है और सभी की महत्ता समान है। ज्ञान, पालन, शक्ति, आदि सभी महत्वपूर्ण तत्व हैं और एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं।
