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 बूँद-बूँद में सीख

इस धरती पर हैं बहुत, पानी के भंडार।

पीने को फिर भी नहीं, बहुत बड़ी है मार॥

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जल से जीवन है जुड़ा, बूँद-बूँद में सीख।

नहीं बचा तो मानिये, मच जाएगी चीख॥

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अगर बचानी ज़िंदगी, करें आज संकल्प।

जल का जग में है नहीं, कोई और विकल्प॥

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धूप नहीं, छाया नहीं, सूखे जल भंडार।

साँसे गिरवी हो गई, हवा बिके बाज़ार॥

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आये दिन होता यहाँ, पानी ख़र्च फिजूल।

बंद सांस को ख़ुद करें, बहुत बड़ी है भूल॥

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जो भी मानव ख़ुद कभी, करता जल का ह्रास।

अपने हाथों आप ही, तोड़े जीवन आस।

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हत्या से बढ़कर हुई, व्यर्थ गिरी जल बूँद।

बिन पानी के कल हमीं, आँखें ना ले मूँद॥

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नदियाँ सब करती रहें, हरा-भरा संसार।

होगा ऐसा ही तभी, जल से हो जब प्यार॥

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पानी से ही चहकते, घर-आँगन-खलिहान।

धरती लगती है सदा, हमको स्वर्ग समान॥

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बाग़, बगीचे, खेत हों, घर या सभी उद्योग।

जीव-जंतु या देव को, जल बिन कैसा भोग॥

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पानी है तो पास है, सब कुछ तेरे पास।

धन-दौलत से कब भला, मिट पाएगी प्यास॥

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जल से धरती है बची, जल से है आकाश।

जल से ही जीवन जुड़ा, सबका है विश्वास॥

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अगर बचानी ज़िंदगी, करें आज संकल्प।

जल का जग में है नहीं, कोई और विकल्प॥

डॉo सत्यवान सौरभ
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट

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