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फिल्मों पर तरह-तरह की जिम्मेदारियां

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Various responsibilities on films अभी तक यह जिम्मेदारी वेद-पुराणों और शास्त्रों पर थी कि वे सब कुछ बता देते थे। हर ज्ञान वहां था। बात चाहे विज्ञान की हो, गणित की हो, ज्योतिष की हो या फिर चाहे लोकाचार की ही क्यों न हो। हमें बता दिया जाता था कि सब कुछ हमारे शास्त्रों में है। सभ्यता और संस्कार तो वहां खैर भरे ही पड़े थे। फिर इतिहास बताने का जिम्मा भी उन्हीं पर डाल दिया गया। सब शास्त्रों में लिखा है। लेकिन इधर इतिहास बताने की जिम्मेदारी फिल्मों पर भी आ गयी है। पिछले कुछ दिनों से देशभक्ति का पाठ पढ़ाने की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर है। वर्क लोड के लिहाज से कहा जा सकता है फिल्मों पर जिम्मेदारियां बहुत बढ़ गयी हैं।

यह ठीक है कि व्हाट्सएप भी इस जिम्मेदारी को कुछ साझा करता है। कई लोग इसे व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी कहते हैं। इस लिहाज से तो फिल्मों को भी अब यूनिवर्सिटी का दर्जा मिल ही जाना चाहिए। एक जमाना था, जब फिल्मों पर इश्क-मोहब्बत का पाठ पढ़ाने का जिम्मा था। फिल्मी गाने तो खैर इश्क-मोहब्बत की कुंजियां ही थे। फिर फिल्में अपराध विज्ञान पढ़ाने लगीं। अपराधी कितनी तरह के हो सकते हैं-यह हमें फिल्मों ने ही बताया।

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लेकिन इधर फिल्मों पर इतिहास पढ़ाने का जिम्मा आ गया है। कुछ लोग इसे व्हाट्सएप की प्रतिद्वंद्विता में खड़ा किया उद्यम भी मान सकते हैं। वैसे इसे सहयोगी संस्थान मानना ज्यादा बेहतर होगा। वैसे ही जैसे बड़े उद्योगों की सब्सीडियां होती हैं। यूं इतिहास पर फिल्में पहले भी बनती थी और खूब बनती थी। बल्कि कहना चाहिए कि सबसे ज्यादा तो इतिहास से संबंधित फिल्में ही बनती थी। कहीं मुगलेआजम बन रही थी, तो कहीं ताजमहल बन रही थी, कहीं लाल किला बन रही थी, कहीं सिकंदर बन रही थी। कहीं आलमआरा बन रही थी, तो कहीं हलाकू बन रही थी। मतलब इतिहास को लेकर अनगिनत फिल्में बनीं। लेकिन किसी ने भी उन फिल्मों के इतिहास को इतिहास नहीं माना। कोई उन्हें प्यार-मोहब्बत की कहानी मान लेता था तो कोई उसे अच्छी किस्सागोई मान लेता था।

कुल मिलाकर वे मनोरंजन का साधन ही बनी रहीं। इतिहास का विकल्प नहीं बनी। लेकिन इधर उन्हें इतिहास का विकल्प मान लिया गया है, बना दिया गया है। अब इतिहास को लेकर बनी फिल्मों को इतिहास के मामले में बिल्कुल शास्त्रों वाला दर्जा मिल रहा है। हालांकि यह दर्जा पहले व्हाट्सएप को मिल चुका है। जैसे पहले कहा जाता था कि सब कुछ शास्त्रों में लिखा है। वैसे ही अब इतिहास के बारे में कहा जा सकता है कि ऐसा इस या उस फिल्म ने दिखाया है। वैसे ही जैसे यह कहा जाता है कि ऐसा व्हाट्सएप में आया था।

विजय गर्ग
सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट, पंजाब

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