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नव कोंपल फिर उगे

आँधी जोड़े हाथ दो, गाए चाहे गीत।

टूटी डाली कब जुड़ी, लाख निभाए रीत॥

क्रोधी पवन प्रहार से, तोड़े तरु की डाल।

माफी से कब जुड़ सके, दुख दे जीवनकाल॥

धूप लगे, जल बरसता, फिर भी रहे उदास।

बीते पल की टीस तो, रहती हर अहसास॥

चलो भुला दें बात सब,  समझ समय की राख।

जुड़ती फिर से कब यहाँ, पर जो टूटी शाख॥

धागे जोड़ें, गोंद से, करें लाख उपचार।

पर जो बिखरा इक दफा, ले, न वही आकार॥

झूठी आशा, या वचन, लाते नहीं बहार।

पेडों से पत्ते गिरे, जुड़ते फिर कब यार।

रंग-रूप कब लौटते, फिर आए कब गंध।

संभव है सब, पर नहीं, गया हृदय आनंद॥

टूटे मन की वेदना, कहे न कोई बात।

भीतर ही भीतर जले, रह जाए सब घात॥

रिश्ते भी हैं डाल सम, स्नेह रहे आधार।

वरना झोंकों से सखे, बिखरेंगे हर बार॥

शाख टूटकर कब जुड़ी, यह जीवन सोपान।

पर नव कोंपल फिर उगे, रख मन से ये ध्यान॥

डॉo सत्यवान सौरभ
कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट

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