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डिजिटल उपवास की सार्थक मुहिम

डिजिटल उपवास की सार्थक मुहिम

Meaningful campaign of digital fasting किसी भी सकारात्मक कार्य को करने के लिए साझा मुहिम की दरकार होती है। मिलजुलकर की गई कोशिशें न केवल समग्र परिवेश की भागीदारी सुनिश्चित करती हैं, बल्कि सफल भी होती हैं। तकनीक के लती बनते बच्चों – बड़ों के बढ़ते आंकड़ों के चलते डिजिटल उपवास के मोर्चे पर भी अब मिलकर कदम उठाने की स्थितियां बन गई हैं। बीते दिनों महाराष्ट्र के सांगली जिले के एक गांव के लोगों ने स्क्रीन से दूरी बनाने को लेकर एक सार्थक पहल की शुरुआत की। डिजिटल डिटाक्स के माध्यम से स्क्रीन समय घटाने की राह चुनी। गौरतलब है कि मोहित्यांचे वडगांव गांव में हर रात सात बजे सायरन बजते ही लोग स्मार्ट फोन और दूसरे इलेक्ट्रानिक उपकरण बंद कर देते हैं। तकनीक के नियत और सधे इस्तेमाल की यह मुहिम सचमुच महत्वपूर्ण है। सामाजिक मेलजोल को बढ़ावा देने के लिए डिजिटल गतिविधियों में बीत रहे असीमित समय से बढ़ती स्वास्थ्य समस्याओं से बचाने वाली है।

भारत ही नहीं, दुनिया के हर हिस्से में बसे लोगों के जीवन का ऐसा कोई पहलू नहीं, जो वर्चुअल व्यस्तता के दुष्प्रभाव से बचा हो। लोग तकनीक के इस जाल में फंसकर अपनों से दूर हो रहे हैं। अपने आप को खो रहे हैं। क्लिक क्लिक की धुन में जीवन की सहजता भुला बैठे हैं। स्क्रीन पर हर पल कुछ न कुछ देखते हुए अपने परिवेश से कट रहे हैं। नतीजन, देश-दुनिया में डिजिटल डिटाक्स से जुड़ी मुहिम देखने को मिल रही हैं। तकनीकी व्यस्तता से बचने का पाठ राजस्थान में ब्रह्माकुमारी सिस्टर्स स्कूल और कालेजों में भी पढ़ाया जा रहा है। वहां ‘डिजिटल डिटाक्स हेल्थ एंड अवेयरनेस और सेल्फ एंपावरमेंट टू डिजिटल डिटाक्स’ जैसे कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। कर्नाटक सरकार भी गेमिंग और इंटरनेट मीडिया के सधे इस्तेमाल की सजगता के लिए इंडिया गेम डेवलपर्स फोरम के साथ डिजिटल डिटाक्स पहल कर चुकी है।

वस्तुतः लोगों को जोड़ने के मोर्चे पर जीवन का हिस्सा बनी तकनीक अब दूरियां बढ़ाने लगी है। स्मार्ट स्क्रीन मित्रों, परिजनों और सगे-संबंधियों को दिया जाने वाला समय चुरा रही है। वर्चुअल व्यस्तता का असर आपराधिक घटनाओं की लिप्तता से लेकर सामाजिक जीवन में बढ़ते अकेलेपन तक दिखने लगा है। साझे प्रयास ही लोगों को इस जाल से निकाल सकते हैं। वर्तमान में तनाव, व्यग्रता और पोस्चर से जुड़ी समस्याओं का एक कारण स्मार्ट स्क्रीन स्क्रॉलिंग भी है। इतना ही नहीं, रात को बिस्तर पर जाने के बाद भी घंटों स्मार्ट स्क्रीन में ताकना नींद की कमी और आंखों से जुड़ी व्याधियों को बढ़ा रहा है। दुनिया भर के अपडेट्स देखते रहना मन को अशांत कर मानसिक तनाव का शिकार बनाता है। स्वास्थ्य समस्याओं के चलते कई देशों में तो महंगी फीस चुकाकर डिजिटल डिटाक्सिंग की सेवाएं ली जा रही हैं।

विजय गर्ग
सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट, पंजाब

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