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Decreasing daughter : Breathing is snatched in the womb itself फिर संकट में हरियाणा की ‘सुकन्या समृद्धि’ ,घटती बेटियां: कोख में ही छीन रहें साँसें

Decreasing daughter

Breathing is snatched in the womb itself कन्या भ्रूण हत्या के लिए बदनाम हरियाणा का लिंगानुपात (एसआरबी यानी जन्म के समय लिंगानुपात) राज्य सरकार द्वारा हाल ही में जारी आंकड़ों के अनुसार आठ साल के सबसे निचले स्तर पर पहुँच गया है। 2024 के पहले 10 महीनों यानी अक्टूबर तक लिंगानुपात 905 दर्ज किया गया। यह पिछले साल से 11 अंक कम है। वर्ष 2016 में इससे कम लिंगानुपात दर्ज किया गया था। वर्ष 2019 में 923 के उच्चतम स्तर पर पहुँचने के बाद वर्ष 2024 में हरियाणा में जन्म के समय लिंगानुपात घटकर 910 रह गया, जो आठ वर्षों में सबसे कम है। इन आंकड़ों ने हरियाणा के कार्यकर्ताओं और नागरिक समाज के सदस्यों को चिंतित कर दिया है, हालांकि अधिकारियों ने नवीनतम आंकड़ों को “मामूली उतार-चढ़ाव” क़रार दिया है। वर्ष 2021 में प्रकाशित राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस-5) के अनुसार भारत में जन्म के समय कुल लिंगानुपात 929 था।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुशंसित आदर्श लिंगानुपात 950 से हरियाणा बहुत दूर है। राज्य आज तक इस आंकड़े को हासिल नहीं कर पाया है। लिंगानुपात में गिरावट का मतलब है कि राज्य में लड़कियों को गर्भ में ही मार दिया जा रहा है। आर्थिक प्रगति के बावजूद हरियाणा में बड़ी संख्या में लोग अभी भी बेटों को प्राथमिकता देते हैं। जब तक यह सोच नहीं बदलेगी, लिंगानुपात को लेकर स्थिति में सुधार नहीं होगा। राज्य के लोगों में लड़कों को प्राथमिकता दिए  जाने के कारण हरियाणा के पड़ोसी राज्यों में अल्ट्रासाउंड संचालकों और गर्भपात केंद्रों का धंधा ख़ूब फल-फूल रहा है। इन राज्यों में ज़्यादा सख्ती नहीं है। हरियाणा से लोग दलालों के जरिए यहाँ पहुँचते हैं और जांच व गर्भपात करवाते हैं। अल्ट्रासाउंड संचालक पैसे के लिए गर्भ में पल रहे भ्रूण की ग़लत जानकारी भी देते हैं। ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जब लड़कों को लड़की बताकर गर्भपात करवा दिया गया।

अल्ट्रासाउंड करने वाले और गर्भपात करने वाले एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। पिछले एक दशक में इस पैमाने पर उल्लेखनीय सुधार करने वाले राज्य के लिए यह एक झटका है। 2014 में हरियाणा में लिंगानुपात सिर्फ़ 871 था। इस पर देशभर में भारी आक्रोश फैल गया और नागरिक समाज संगठनों, राज्य सरकार और केंद्र ने स्थिति को सुधारने के लिए ठोस प्रयास किए। हरियाणा में गिरते लिंगानुपात को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान शुरू किया था। अभियान के बाद राज्य का लिंगानुपात सुधर कर 2019 में 923 पर पहुँच गया। लेकिन 2020 में इसमें फिर से गिरावट शुरू हो गई, जो अब तक जारी है। हालांकि, तब से लिंगानुपात में एक बार फिर से गिरावट देखी गई है, यह झटका ऐसे समय में आया है जब राज्य की महिलाएँ अंतरराष्ट्रीय मंचों सहित खेलों में और साथ ही शिक्षाविदों में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही हैं।

2014 और 2019 के बीच हुई बढ़त प्री-कॉन्सेप्शन एंड प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक्स एक्ट, 1994 (पीएनडीटी एक्ट) के सख्त प्रवर्तन के साथ-साथ गहन जागरूकता अभियान के कारण हुई। इसका उद्देश्य हरियाणा में बड़े पैमाने पर जन्मपूर्व लिंग चयन और कन्या भ्रूण हत्या पर अंकुश लगाना था, साथ ही साथ सामाजिक दृष्टिकोण को बदलना था, जिसमें परिवार लड़कों को पसंद करते थे और लड़की को बोझ के रूप में देखते थे। हरियाणा में बच्ची के जन्म पर 21, 000 रुपये की एकमुश्त राशि प्रदान करने और सुकन्या समृद्धि योजना के माध्यम से लड़कियों के लिए बैंक खाते खोलने के बावजूद, बालिकाओं को बोझ के रूप में क्यों देखा जाता है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि नज़रिया बदलने के लिए और अधिक काम करने की ज़रूरत है और हाल के वर्षों में कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के उद्देश्य से बनाए गए कानूनों का क्रियान्वयन ढीला पड़ गया है।

लड़कों की पसंद के कारण राज्य में लड़कियों की चाहत कम हो गई है क्योंकि उनके परिवारों को डर है कि वे भागकर शादी करने के कारण भविष्य में बदनामी का कारण बन सकती हैं। उनके अनुसार, लड़कियाँ पैसा और संपत्ति कमाकर अपने परिवार की मदद नहीं कर सकती हैं। इसके विपरीत, परिवारों को उनकी शादी में दहेज देना होगा। ऐसी सोच के कारण हरियाणा में लड़कों को शादी के लिए लड़कियाँ नहीं मिल रही हैं। हरियाणा के अधिकांश गांवों में आमतौर पर ऐसी समस्या है। कई परिवारों में अगर लड़कियों का पालन-पोषण ठीक से नहीं किया जाता है तो वे कुपोषण का शिकार हो जाती हैं और कुछ समय बाद उनकी मौत भी हो जाती है। हरियाणा की आर्थिक तरक्की के बावजूद यहां की बड़ी आबादी की मानसिकता अब भी नहीं बदली है। जब तक लड़कों और लड़कियों में भेदभाव की यह मानसिकता नहीं बदलेगी, हालात बेहतर नहीं होंगे।

-प्रियंका सौरभ

रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार

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