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Question about decline in ground water level and quality भूजल स्तर में गिरावट और गुणवत्ता का सवाल

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Question about decline in ground water level and quality भूजल के स्तर में तेजी से गिरावट व भूजल की गुणवत्ता जहां बड़े खतरे के संकेत हैं, वहीं साफ पेयजल की कमी के भीषण संकट की चेतावनी है। खासकर इसलिए कि धरती पर केवल तीन फीसदी ही मीठा पानी है जो हर जीव को जीवन दान देता है। दरअसल, धरती, समुद्र, उसके खारे पानी और धरती पर उपलब्ध मीठे पानी का निकट का रिश्ता है। जब हम धरती के आकार और उसकी जैव विविधता खासकर पेड़-पौधों से छेड़छाड़ करते है तो बारिश, जल प्रबंधन एवं जल उपलब्धता आदि पर व्यापक असर पड़ता है। भूजल भी इससे अछूता नहीं। भूजल का बढ़ता संकट यानी उसके भयावह स्तर तक गिरने का अहम कारण उसका बेतहाशा दोहन है जिसके चलते जमीन की भीतरी परत दिनोंदिन तेजी से सिकुड़ रही है। नतीजतन जमीन के धंसने का खतरा भी बढ़ रहा है। वहीं इससे भूमि की भीतरी परत (एक्वीफायर) की जलधारण क्षमता खत्म हो जाती है।

water quality
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भारत में संभावित भूजल भंडार 432 लाख हैक्टर मीटर और दोहन योग्य सकल भूजल की मात्रा 396 लाख हैक्टर मीटर है। इस विशाल मात्रा का विकास, बरसाती पानी के, एक्वीफायर में रिसने के कारण होता है। यही पानी प्राकृतिक जल चक्र का अभिन्न अंग है। बारिश के दिनों में हर साल यह पुनर्जीवित होता है। अतः भूजल का दोहन, उसके अविरल प्रवाह तथा अवांछित घटकों के सुरक्षित निष्पादन को समझकर करना बेहद जरूरी है। वर्ष 1960 के बाद से पानी की मांग दोगुनी से अधिक हो गयी है। भूजल दोहन के मामले में हमारा देश शीर्ष पर है। देश का उत्तरी गांगेय इलाका तो भूजल दोहन के मामले में देश के दूसरे इलाकों के मुकाबले कीर्तिमान बना चुका है। राजधानी दिल्ली सहित समीप के कई शहरों का डार्क जोन में आना और दिल्ली एनसीआर में गंभीर पानी का संकट इसका सबूत है। नतीजतन, इस इलाके की जमीन की सतह का आकार तेजी से बदल रहा है। यहां धरती भी तेजी से धंसने लगी है। यह सिलसिला केवल एनसीआर तक ही नहीं बल्कि पंजाब से लेकर पश्चिम बंगाल और गुजरात तक जारी है। पंजाब के 23 जिलों में भूजल ‘की स्थिति सबसे ज्यादा गंभीर है। दरअसल पंजाब की 94 फीसदी आबादी पीने के पानी के लिए भूजल पर ही निर्भर है। भूजल में बढ़ते प्रदूषण का यहां लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है और वे गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।

बीते दो दशकों में सिंचाई के लिए भूजल का अत्यधिक उपयोग हुआ है जिससे जहां भूजल की मांग बढ़ी वहीं गुणवत्ता खराब होती चली गयी। यहां भूजल में भारी धातुओं और रेडियो एक्टिव पदार्थों की मौजूदगी में तेजी से इजाफा हुआ। इसी प्रकार हरियाणा के 141 विकास खंडों में से 85 भूजल के अत्यधिक दोहन के चलते गंभीर स्थिति में हैं। यह हिस्सा राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का 60 फीसदी है। इससे राज्य की भूजल संकट की स्थिति का अंदाजा लग सकता है। गौरतलब यह है कि देश में भूजल निकासी का औसत 63 फीसदी है जबकि हरियाणा में भूजल निकासी 137 फीसदी से भी अधिक है। उत्तर प्रदेश में भूगर्भ जल विभाग ने दस महानगरों को अति दोहित की श्रेणी में रखा है और जल के दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ कार्रवाई के लिए नियमावली भी बनाई है। इसमें जुर्माना और कारावास दोनों का प्रावधान है। लेकिन यह नियमावली मात्र खानापूर्ति ही रह गयी है। वैज्ञानिक जलवायु में आ रहे बदलाव में भूजल दोहन की बड़ी भूमिका मानते है। ऐसे में भूजल प्रबंधन और भूजल उपयोग सम्बंधी रणनीतियों में व्यापक ध्यान दिए जाने की जरूरत है। क्योंकि आबादी में बढ़ोतरी, बढ़ता शहरीकरण और कृषि भूमि पर गहन खेती के साथ ही लगातार भूजल की गिरावट हालात को और भयावह बना देगी।

ground water
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कई अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि हिमालय की तलहटी से लेकर गंगा के मैदानों तक भूमि के व्यापक हिस्से में भूजल की बड़े पैमाने पर कमी हुयी है। वहीं आर्सेनिक, नाइट्रेट, सोडियम, यूरेनियम, फ्लोराइड आदि की अधिकता के कारण भूजल की खराब गुणवत्ता की चिंता केवल साफ पेयजल तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ये सिंचाई के लिए भी नुकसानदेह साबित हो रही है। आंध्र, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, गुजरात और उत्तर प्रदेश के भूजल के 12.5 फीसदी नमूने उच्च सोडियम की मौजूदगी के कारण सिंचाई के लिए अनुकूल नहीं पाये गये हैं। देश के 440 जिलों के भूजल में बढ़ा नाइट्रेट स्तर गंभीर स्वास्थ्य समस्या पैदा कर रहा है। सीजीडब्लयूबी की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। पानी में नाइट्रेट प्रदूषण मुख्यतः नाइट्रोजन आधारित उर्वरकों और पशु अपशिष्ट के अनुचित निपटान के कारण होता है। एक रिपोर्ट की मानें तो पानी के 9.04 फीसदी नमूनों में फ्लोराइड का स्तर सुरक्षित सीमा से अधिक और 3.55 फीसदी आर्सेनिक की मौजूदगी पायी गयी। यह प्रदूषण पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक है। इससे कैंसर, किडनी, हड्डियों और त्वचा रोगों का खतरा तेजी से बढ़ रहा है।

सिंचाई के भी उपयुक्त ना माने जाने वाले भूजल का प्रतिशत एक साल में 7.69 से बढ़कर 8.07 तक बढ़ गया है। पानी में लवणों की मौजूदगी लगातार बढ़ते जाना नाकामी ही है। जमीन पर सोडियम की परत जमना भी अच्छा संकेत नहीं है। जहां सोडियम की मात्रा सीमा से अधिक है, वहां विशेष अभियान चलाने के साथ प्रभावी निगरानी भी जरूरी है। देश में भूजल की गुणवत्ता में गिरावट के लिए उद्योगों से निकलने वाले दूषित जल के उपचार की व्यवस्था न होना, खेती में अंधाधुंध उर्वरकों का इस्तेमाल, शहरीकरण, घरेलू कचरा मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। इन पर अंकुश लगाये बिना भूजल की गुणवत्ता हासिल कर पाना टेड़ी खीर है।

विजय गर्ग , सेवानिवृत्त प्रिंसिपल , शैक्षिक स्तंभकार, स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब

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