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Crime Against Women: गायब होती बेटियाँ आख़िर किसकी बन रहीं शिकार?

Crime Against Women

Crime Against Women: भारत में बेटियों की सुरक्षा हमेशा से ही सबसे गंभीर मुद्दा रहा है। इसे लेकर कई कानून भी बनाए गए हैं, लेकिन बावजूद इसके देश में लड़कियों के लापता होने के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार भारत में पिछले दो साल के बीच 15.13 लाख से ज़्यादा लड़कियाँ और महिलाएँ लापता हुईं हैं। अब ये महिलाएँ कहाँ गई, इनके साथ क्या हुआ, इसके बारे में किसी को कुछ भी नहीं पता है। इन लापता लड़कियों में 18 साल से कम और उससे ज़्यादा दोनों उम्र की महिलाएँ शामिल है।

रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर रोज़ 345 लड़कियाँ गायब हो जाती हैं। इनमें 170 लड़कियाँ किडनैप होती हैं, 172 लड़कियाँ लापता होती हैं और लगभग 3 लड़कियों की तस्करी कर दी जाती हैं। इनमें से कुछ लड़कियाँ तो मिल जाती हैं, लेकिन बड़ी संख्या में लापता, किडनैप और तस्करी की गई लड़कियों का कुछ पता नहीं चलता। इस संख्या की गणना गुमशुदा महिलाओं और लड़कियों के सम्बंध में पुलिस स्टेशनों में दर्ज रिपोर्टों के आधार पर की है। हालांकि सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि असल संख्या अधिक हो सकती है क्योंकि कई परिवार सामाजिक कलंक समेत विभिन्न कारणों से लापता लड़कियों की रिपोर्ट दर्ज नहीं कराते हैं।

आंकड़ों के अनुसार सबसे ज़्यादा महिलाएँ मध्य प्रदेश से लापता हुई हैं। एमपी के बाद लिस्ट में दूसरा स्थान बंगाल का है। इन राज्यों के अलावा राजधानी दिल्ली में भी लड़कियों और महिलाओं के गायब होने के कई मामले सामने आए हैं। आंकड़ों की मानें तो केंद्र शासित प्रदेशों में राजधानी दिल्ली इस लिस्ट में सबसे ऊपर है। रिपोर्ट चौंकाने वाली है। जो लड़कियाँ गायब होती हैं, उनमें से अधिकतर का पता नहीं चल पाता कि उनके साथ क्या हुआ है? वे कहाँ गई हैं? लापता होने के पीछे राज क्या हैं?

16 दिसम्बर 2012 को दिल्ली के निर्भया कांड ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। इस घटना के बाद महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े कई कठोर कानून बनाए गए, लेकिन सवाल ये है कि क्या कानूनों के बनाए जाने के बाद भी देश में महिलाओं की स्थितियाँ सुधरी हैं या महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों में कोई कमी नज़र आई है भारत में महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा को लेकर कई कानून बनाए गए हैं।

देश में हो रहे यौन अपराध को रोकने के लिए पुराने कानूनों में संशोधन भी किया गया और उसे कठोर भी बनाया गया है। इसके अलावा देश में 12 साल से कम उम्र की लड़कियों के साथ रेप की घटना में दोषी को मृत्युदंड सहित कई कठोर दंडात्मक प्रावधान भी तय किए गए हैं।

देश भर में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई पहल की हैं, जिसमें यौन अपराधों के खिलाफ प्रभावी रोकथाम के लिए आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 शामिल है। इसके अलावा, आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2018 को 12 साल से कम उम्र की लड़कियों के बलात्कार के लिए मौत की सजा सहित और भी अधिक कठोर दंड प्रावधानों को-को निर्धारित करने के लिए अधिनियमित किया गया था। अधिनियम में बलात्कार के मामलों में दो महीने में जांच पूरी करने और आरोप पत्र दाखिल करने और अगले दो महीने में सुनवाई पूरी करने का भी आदेश दिया गया है।

सरकार ने आपातकालीन प्रतिक्रिया सहायता प्रणाली शुरू की है, जो सभी आपात स्थितियों के लिए एक अखिल भारतीय, एकल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त नंबर (112) आधारित प्रणाली प्रदान करती है, जिसमें संकटग्रस्त स्थान पर फील्ड संसाधनों को कंप्यूटर सहायता से भेजा जाता है।

स्मार्ट पुलिसिंग और सुरक्षा प्रबंधन में सहायता के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए, पहले चरण में आठ शहरों-अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, लखनऊ और मुंबई में सुरक्षित शहर परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। फिर भी भारत में महिलाएँ आज से 10 साल पहले भी यौन अपराधियों का शिकार बनती रही है और आज भी हालात कुछ बहुत ऐसे ही हैं।

देश में छेड़छाड़, अपहरण और दुष्कर्म जैसे मामले रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। सरकार के तमाम दावों के बावजूद भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध रुक नहीं रहे हैं। इसका एक मुख्य कारण इस मुद्दे को लेकर सभी राजनीतिक दलों में रुचि की कमी है। देश में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर हर महिलाओं और लड़कियों को कुछ कानूनों के बारे में जानना बेहद ज़रूरी है। इन कानूनों में राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, महिला सुरक्षा कानून, पॉक्सो एक्ट कानून शामिल है

डॉo सत्यवान सौरभ, कवि , स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, आकाशवाणी एवं टीवी पेनालिस्ट

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