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मस्तिष्क में बढ़ रहे प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों

microplastic

Microparticles of plastic growing in the brain इंसानी शरीर में बढ़ते प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों को लेकर वैज्ञानिकों ने नया खुलासा किया है। एक नए अध्ययन से पता चला है कि इंसानी दिमाग में प्लास्टिक के इन महीन कणों का स्तर तेजी से बढ़ रहा है। इससे मस्तिष्काघात और ट्यूमर का खतरा बढ़ता जा रहा है।

इंसानी शरीर में बढ़ता प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों का स्तर एक बड़े खतरे को उजागर करता है। शोध में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि गुर्दे और लीवर की तुलना में इंसानी मस्तिष्क में प्लास्टिक के कहीं अधिक महीन कण जमा हो रहे हैं। इस अध्ययन के नतीजे अंतरराष्ट्रीय जर्नल नेचर मेडिसिन में प्रकाशित हुए हैं। इस अध्ययन में वर्ष 1997 से 2024 के बीच किए दर्जनों पोस्टमार्टम में मस्तिष्क के ऊतकों में प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों में बढ़ती प्रवृत्ति देखी गई है। इतना ही नहीं, शोधकर्ताओं को लीवर और गुर्दे के नमूनों में भी प्लास्टिक के महीन कण मिले हैं।

मस्तिष्क में बढ़ रहे प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों
मस्तिष्क में बढ़ रहे प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों

अध्ययन में शोधकर्ताओं ने लीवर, गुर्दे और मस्तिष्क के नमूनों में प्लास्टिक के सूक्ष्म और नैनोकणों का अध्ययन करने के लिए नए तरीकों की मदद ली है। शोधकताओं ने अपने इस अध्ययन में मस्तिष्क के 52 नमूनों का विश्लेषण किया है। इस दौरान 2016 में 28 नमूनों का, जबकि 2024 में 24 नमूनों का विश्लेषण किया गया। लीवर और किडनी के जो नमूनों लिए गए थे उनमें प्लास्टिक का स्तर करीब-करीब समान था। हालांकि, मस्तिष्क के नमूने जो फ्रंटल कार्टेक्स हस्सेि से लिए गए थे उनमें प्लास्टिक का स्तर बेहद अधिक था।

विश्लेषण में यह भी सामने आया है कि 2024 के लीवर और मस्तिष्क के नमूनों में प्लास्टिक के महीन कणों का स्तर 2016 की तुलना में बहुत अधिक था। उन्होंने इन निष्कर्षों की तुलना 1997 से 2013 के बीच लिए मस्तिष्क के ऊत्तकों के नमूनों से भी की है और पाया है कि हाल के नमूनों में प्लास्टिक के कणों का स्तर कहीं अधिक है।

इसी तरह स्वस्थ लोगों की तुलना में डिमेंशिया से पीड़ित 12 लोगों के मस्तिष्क में प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों की कहीं अधिक मौजूदगी का भी पता चला है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि डिमेंशिया से पीड़ित लोगों के मस्तिष्क के नमूनों में प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों का स्तर छह गुना अधिक था। शोधकर्ताओं के मुताबिक डिमेंशिया से होने वाले नुकसान से इन कणों की संख्या बढ़ सकती है। हालांकि वे यह पक्के तौर पर नहीं कह सकते कि यह डिमेंशिया का कारण बनता है। गौरतलब है कि पिछले पांच दशकों में प्लास्टिक एक बड़े खतरे के रूप में उभरा है। यही वजह है कि ऊंचे पहाड़ों से लेकर गहरे समुद्र तक आज धरती की शायद ही ऐसी कोई जगह है, जहां प्लास्टिक की मौजूदगी न हों।

विजय गर्ग
सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट, पंजाब

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